आसमानो में बिखरी चाँदनी सा
तुम्हारा दिलकश सोन्दर्य,
हल्के से अंधेरे में लिपटे चाँद सा
तुम्हारा पूरकशिश चेहरा,
रातो की स्याही में झिलमिल करते
सितारो जैसी
तुम्हारी पुरसकून आँखे,
फ़िज़ाओ में अठखेलियां करती
हवाओं सा
तुम्हारा चंचल अंदाज,
आसमाँ से उतर कर सागर को चूमती
काली घटाओं से
तुम्हारे घनेरे गेसू
तपिश में ठंडी बयारों सी
तुम्हारी दिलफरेब बातें
छम छम करती बारिश की
बूँदो सी
तुम्हारी खनकती हँसी.....
Friday, September 18, 2009
चाँदनी सा दिलकश सोन्दर्य
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2 comments:
बंधुवर,
आपकी ये कमनीय कविता रंगों से भरी है. 'बारिश की बूंदों की छम-छम और खनकती हंसी' की तुल्यता कवि-मन की ऐसी उपज है, जो किसी भी सहृदय को आनंदित कर सकती है ! सुन्दर उपमान रचे हैं आपने ! बधाई !!
२० घंटे पहले भी, यानी कल रात ११.४५ पर, आपके ब्लॉग पर आया था. मेरी टिपण्णी पोस्ट ही नहीं हुई, अब हो जाए तो प्रभु-कृपा ! --आ.
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